इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
नाम को चर्चा नहीं 'हातिम' कहीं ईहाम का
Habib Jalib
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कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
इश्क़ ने किश्वर-ए-दिल लूटा है
जब पुकारे है वो अबे ओ होत
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
कभू बीमार सुन कर वो अयादत को तो आता था
नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है
इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त
मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द