मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द
मेरे मुरीद हो जो तुम्हें दोस्ताँ है दर्द
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'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
हाथ में देख कर तिरे मरहम
न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा
क़यामत तक जुदा होवे न या-रब
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ है
जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़
अब की चमन में गुल का ने नाम ओ ने निशाँ है
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम