बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
तल्ख़ मत हो कि मिठाई से मगस आती है
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क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में
तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
अज़ल से दिल है सज्दा में तिरे अबरू के मस्जिद में
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
करूँ हूँ रात दिन फेरे कई फेरे मियाँ साहिब