जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़
कि उस तरफ़ को इधर से भी राह निकले है
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ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला
ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
रात मेरे फ़ुग़ाँ-ओ-नाले से
मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल
अब्र में याद-ए-यार आवे है
क्या हुआ गर शैख़ यारो हाजी-उल-हरमैन है