जुनूँ है फ़ौज फ़ौज और इस तरफ़ 'हातिम' अकेला है
नहीं कुइ तुझ बग़ैर अब ऐ मिरे अल्लाह क्या कीजे
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गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
दे के दिल हाथ तिरे अपने हाथ
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
बदन पर कुछ मिरे ज़ाहिर नहीं और दिल में सोज़िश है
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में