गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
वगर्ना हिर्स आगे थान सौ गज़ का लंगोटी है
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निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
किसू मशरब में और मज़हब में
हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
इस की क़ुदरत की दीद करता हूँ
वस्फ़ अँखियों का लिखा हम ने गुल-ए-बादाम पर
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
तू जो कहता है बोलता क्या है
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू