गली में उस की न देखा कभू किसी को मगर
अजल-गिरफ़्ता कोई गाह गाह निकले है
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नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
बाग़ में तू कभू जो हँसता है
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख
हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है
अगर रोते न हम तो देखते तुम
मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो