अगर रोते न हम तो देखते तुम
जहाँ में नाव को दरिया न होता
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मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
तब्अ तेरी अजब तमाशा है
जिस कूँ पी का ख़याल होता है
कभू बीमार सुन कर वो अयादत को तो आता था
न बुलबुल में न परवाने में देखा
आरिज़ से उस के ज़ुल्फ़ में क्यूँ-कर है रौशनी
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़
देखने से तिरे जी पाता हूँ
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ