अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
वक़्त-ए-फ़ुर्सत बूझ ले ये हुक्मरानी फिर कहाँ
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तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से
चमन में दहर के हर गुल है कान की सूरत
इश्क़-बाज़ी बुल-हवस बाज़ी न जान
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
बैत-बहसी न कर ऐ फ़ाख़्ता गुलशन में कि आज
मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ
हाथ में देख कर तिरे मरहम