घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
दर-ब-दर हम ख़राब होते हैं
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ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
है अबस 'हातिम' ये सब मज़मून ओ मअ'नी का तलाश
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा
हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
आशिक़ का जहाँ में घर न देखा
दिल देखते ही उस को गिरफ़्तार हो गया