ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
शम्अ मज्लिस में बड़ी दिल-सोज़ परवाने की है
Allama Iqbal
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मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
जवाब-ए-नामा या देता नहीं या क़ैद करता है
हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
वस्फ़ अँखियों का लिखा हम ने गुल-ए-बादाम पर
वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है
तू जो कहता है बोलता क्या है
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
तब्अ तेरी अजब तमाशा है
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है