अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम
उधर ये सब हैं इधर एक मेरी जाँ तन्हा
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ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ
तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
न इतना चाहिए ऐ पुर-शिकम ख़्वाब
साहिबान-ए-क़स्र को मिलती नहीं है ब'अद-ए-मर्ग
जी तरसता है यार की ख़ातिर
किस तरह से गुज़ार करूँ राह-ए-इश्क़ में
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
क्या हुआ गर शैख़ यारो हाजी-उल-हरमैन है
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है
जिस ने पाया उसे सो है ख़ामोश
क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है