जिस ने पाया उसे सो है ख़ामोश
जिस ने पाया नहीं सो बकता है
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हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम
एक बोसा माँगता है तुम से 'हातिम' सा गदा
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
जाने न पाए उस को जहाँ हो तहाँ से लाओ
यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था
आरिज़ से उस के ज़ुल्फ़ में क्यूँ-कर है रौशनी