'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख
जान कर क्यूँ बला में फँसता है
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पगड़ी अपनी यहाँ सँभाल चलो
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
जी तरसता है यार की ख़ातिर
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
सौ बार तार तार किया तो भी अब तलक
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों