मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
हम को जला के आग लगाने किधर गए
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एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
बाग़ में तू कभू जो हँसता है
मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डर कर हाथ डाल
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
जब तक कि गरेबान में यक तार रहेगा
रात मेरे फ़ुग़ाँ-ओ-नाले से
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
मौसम-ए-गुल का मगर क़ाफ़िला जाता है कि आज
मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो
गज़क की इस क़दर ऐ मस्त तुझ को क्या शिताबी है
हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो