दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम ये क्या ढंग है
Anwar Masood
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Javed Akhtar
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Faiz Ahmad Faiz
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जब से तुम्हारी आँखें आलम को भाइयाँ हैं
ख़ुम-ख़ाना मय-कशों ने किया इस क़दर तही
अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं
ऐ ख़िरद-मंदो मुबारक हो तुम्हें फ़र्ज़ानगी
इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में
आ कर तिरी गली में क़दम-बोसी के लिए