आ कर तिरी गली में क़दम-बोसी के लिए
फिर आसमाँ की भूल गया राह आफ़्ताब
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देख बुनियाद रब की आदम है
तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
किस तरह से गुज़ार करूँ राह-ए-इश्क़ में
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम
जुनूँ है फ़ौज फ़ौज और इस तरफ़ 'हातिम' अकेला है
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का