आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज़्र जग में अकेला जिया तो क्या
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(459) Peoples Rate This
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
गज़क की इस क़दर ऐ मस्त तुझ को क्या शिताबी है
इस दौर के असर का जो पूछो बयाँ नहीं
तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच
चमन ख़राब किया, हो ख़िज़ाँ का ख़ाना-ख़राब
देखने से तिरे जी पाता हूँ
जुनूँ है फ़ौज फ़ौज और इस तरफ़ 'हातिम' अकेला है
देखते सज्दे में आता है जो करता है निगाह
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल