शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
दो करे दिल के तईं ये नीमचा अंग्रेज़ का
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इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और दर्द है उस का तबीब
जिस के मुँह की उतर गई लोई
औक़ात-ए-शैख़ गो कि सुजूद ओ क़याम है
क़यामत तक जुदा होवे न या-रब
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे
इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है
मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है