इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और दर्द है उस का तबीब
जो नहीं इस मर्ज़ का तालिब सदा रंजूर है
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अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
साहिबान-ए-क़स्र को मिलती नहीं है ब'अद-ए-मर्ग
तुम कि बैठे हुए इक आफ़त हो
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
था पास अभी किधर गया दिल
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
दिल मिरा आज यार में है गा
रात मेरे फ़ुग़ाँ-ओ-नाले से
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह