इन दिनों हम से जो वहशी की तरह भड़को हो
ये तो मिलने का तुम्हारे कभू उस्लूब न था
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तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
पगड़ी अपनी यहाँ सँभाल चलो
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो
ज़ाहिद को हम ने देख ख़राबात में कहा
कई दीवान कह चुका 'हातिम'
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली
तू देख उसे सब जा आँखों के उठा पर्दे
क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे