फड़कूँ तो सर फटे है न फड़कूँ तो जी घटे
तंग इस क़दर दिया मुझे सय्याद ने क़फ़स
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जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
जब हुए 'हातिम' हम उस से आश्ना
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह
ख़ाकसारों का दिल ख़ज़ीना है
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला