हक़ से मिलना गेरवे कपड़ों उपर मौक़ूफ़ नईं
दिल के तईं रंगो फ़क़ीरी ये है और सब है लिबास
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क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
बाग़ में तू कभू जो हँसता है
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के
शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त
बैत-बहसी न कर ऐ फ़ाख़्ता गुलशन में कि आज