क्यूँकर इन काली बलाओं से बचेगा आशिक़
ख़त सियह ख़ाल सियह ज़ुल्फ़ सियह चश्म सियाह
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जब आप से ही गुज़र गए हम
ज़ाहिद को हम ने देख ख़राबात में कहा
जब तक कि गरेबान में यक तार रहेगा
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
हक़ से मिलना गेरवे कपड़ों उपर मौक़ूफ़ नईं
तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना
चमन ख़राब किया, हो ख़िज़ाँ का ख़ाना-ख़राब
सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए
जब से तुम्हारी आँखें आलम को भाइयाँ हैं
जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से