कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
जहाँ ख़ुर्शीद-रू हो आ के हम-ख़्वाब
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केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा
किसू मशरब में और मज़हब में
न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम
छुपाता क्या है मुँह कब तक छुपेगा
है कभू दिल में कभू जी में कभू आँखों के बीच
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
देख बुनियाद रब की आदम है
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है
तू जो कहता है बोलता क्या है
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह