है कभू दिल में कभू जी में कभू आँखों के बीच
कौन कहता है उसे यारो कि हरजाई नहीं
Ahmad Faraz
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Mir Taqi Mir
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मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ है
मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था
सौ बार तार तार किया तो भी अब तलक
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच
कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक