है राह-ए-आशिक़ी तारीक और बारीक और सुकड़ी
नहीं कुछ काम आने की यहाँ ज़ाहिद तिरी लकड़ी
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एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
ने काबा की हवस न हवा-ए-कुनिश्त है
क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख
तू ने ग़ारत किया घर बैठे घर इक आलम का
कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम