दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
कभू दरिया कभू सफ़ीना है
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बदन पर कुछ मिरे ज़ाहिर नहीं और दिल में सोज़िश है
नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
औक़ात-ए-शैख़ गो कि सुजूद ओ क़याम है
जुनूँ है फ़ौज फ़ौज और इस तरफ़ 'हातिम' अकेला है
सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए
अब की चमन में गुल का ने नाम ओ ने निशाँ है
रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से