दिल को मारा चश्म ने अबरू की तलवारों से आज
क्यूँ भिड़ा था जा के ये हुशियार मय-ख़्वारों से आज
Rahat Indori
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इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
राह में ग़म-ज़दा-ए-इश्क़ को क्या टोको हो
देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी
हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम