दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
ताक़त-ए-सब्र हो न हो ताब-ओ-क़रार हो न हो
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कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ
दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
रखे है शीशा मिरा संग साथ रब्त-ए-क़दीम
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
तुम तो बैठे हुए पुर-आफ़त हो
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है