कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ
धोना वही जो दिल की सियाही को धोइए
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क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
हुस्न आईना फ़ाश करता है
कहें हम बहर-ए-बे-पायान-ए-ग़म की माहियत किस से
छुपाता क्या है मुँह कब तक छुपेगा
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
देखा किसी ने हम से ज़माने ने क्या किया
मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डर कर हाथ डाल
है राह-ए-आशिक़ी तारीक और बारीक और सुकड़ी
वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू