मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी
अचरज है जो न टूटे पत्थर से आबगीना
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कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और दर्द है उस का तबीब
इश्क़ ने किश्वर-ए-दिल लूटा है
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है
मैं कुफ़्र ओ दीं से गुज़र कर हुआ हूँ ला-मज़हब
इस क़दर की सर्फ़ तस्ख़ीर-ए-परी-रूयाँ में उम्र
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
ख़ाकसारों का दिल ख़ज़ीना है
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है