ख़ुदा को जिस से पहुँचें हैं वो और ही राह है ज़ाहिद
पटकते सर तिरी गो घिस गई सज्दों से पेशानी
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मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
पगड़ी अपनी यहाँ सँभाल चलो
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा
तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
रिश्ता-ए-उमर-दराज़ अपना मैं कोताह करूँ
जब हुए 'हातिम' हम उस से आश्ना
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब