बस नहीं चलता जो उस दम उन के ऊपर गर पड़े
आशिक़ ओ माशूक़ को जब एक जा पाता है चर्ख़
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(402) Peoples Rate This
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
दिल-ए-उश्शाक़ परिंदों की तरह उड़ते हैं
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा
था पास अभी किधर गया दिल
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में
मेरे आँसू के पोछने को मियाँ