मेरे दुख की दवा भी रखता है
ख़ुद को मुझ से जुदा भी रखता है
माँगता भी नहीं किसी से कुछ
लब पे लेकिन दुआ भी रखता है
हाँ चलाता है आँधियाँ लेकिन
मौसमों को हरा भी रखता है
जब भी लाता है ग़म पुराने वो
उन में हिस्सा नया भी रखता है
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उस एक शख़्स का कोई पता नहीं मिलता
क्या ख़ला आसमान था पहले
मेरा वहम-ओ-गुमान रहने दे
लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा
मैं इंसाँ था ख़ुदा होने से पहले
न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा में आया है
दीवार-ओ-दर सा चाहिए दीवार-ओ-दर मुझे
तिरी जब नींद का दफ़्तर खुला था
आग दरिया को इशारों से लगाने वाला