जुदा Poetry (page 11)

नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग

रियाज़ ख़ैराबादी

सर-ए-राह इक हादिसा हो गया

ऋषि पटियालवी

उम्र-भर इश्क़ किसी तौर न कम हो आमीन

रहमान फ़ारिस

सर-ब-सर यार की मर्ज़ी पे फ़िदा हो जाना

रहमान फ़ारिस

नज़्ज़ारा-ए-जमाल ने सोने नहीं दिया

रेहाना रूही

हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

छेड़ के साज़-ए-ज़रगरी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है रक़्स में

राज़ी अख्तर शौक़

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

हूँ शामिल सब में और सब से जुदा हूँ

रज़ा अमरोही

फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग

रविश सिद्दीक़ी

बादा-ए-गुल को सब अंदोह-रुबा कहते हैं

रविश सिद्दीक़ी

सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे

रौनक़ नईम

ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोश-ए-बे-ख़ुदी

रतन पंडोरवी

लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ

रतन पंडोरवी

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

रासिख़ फारानी

मालूम है वो मुझ से ख़फ़ा है भी नहीं भी

राशिद आज़र

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

मेरे लिए तो हर्फ़-ए-दुआ हो गया वो शख़्स

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

रिश्ता-ए-दिल भी किसी दिन ख़्वाब सा हो जाएगा

रशीद कामिल

रात क्या सोच रहा था मैं भी

रसा चुग़ताई

मिट्टी जब तक नम रहती है

रसा चुग़ताई

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

राम कृष्ण मुज़्तर

उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका लिए सर में अकेला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शामिल हूँ क़ाफ़िले में मगर सर में धुँद है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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