आगे बढ़ो Poetry (page 11)

ढूँडिए दिन रात हफ़्तों और महीनों के बटन

इमरान शमशाद

तुझ को देखा तो ये लगा है मुझे

इमरान हुसैन आज़ाद

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

ख़िज़ाँ के होश किसी रोज़ मैं उड़ाता हुआ

इमरान हुसैन आज़ाद

इस दश्त से आगे भी कोई दश्त-ए-गुमाँ है

इमरान आमी

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप

इमदाद अली बहर

लम्हा मिरी गिरफ़्त में आया निकल गया

इम्दाद आकाश

हाथ लहराता रहा वो बैठ कर खिड़की के साथ

इफ़्तिख़ार नसीम

बस एक ख़्वाब की सूरत कहीं है घर मेरा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

हुमैरा राहत

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

तिरी तलाश से बाक़ी कोई मकाँ न रहा

हातिम अली मेहर

मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

ज़िंदगी भर दर-ओ-दीवार सजाए जाएँ

हसन जमील

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

गधों का चैलन्ज

हरफ़न लखनवी

वो इक जगह न कहीं रह सका और उस के साथ

हनीफ़ नज्मी

कुशूद-ए-कार की ख़ातिर ख़ुदा बदलते रहे

हनीफ़ नज्मी

हम कहाँ कुंज-नशीनों में रहे

हामिदी काश्मीरी

भूल जा मत रह किसी की याद में खोया हुआ

हामिद जीलानी

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