आगे बढ़ो Poetry (page 9)

क्यूँ ढूँढती रहती हूँ उसे सारे जहाँ में

सबा नुसरत

कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा

सबा अकबराबादी

आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए

सबा अकबराबादी

होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर

सबा अफ़ग़ानी

ज़बान पे नाला-ओ-फ़रियाद के सिवा क्या है

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था

रियाज़ लतीफ़

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

दौलत-ए-हर्फ़-ओ-बयाँ साथ लिए फिरते हैं

रिफ़अत सरोश

मकान-ए-दिल से जो उठता था वो धुआँ भी गया

रियाज़ मजीद

शहर अपना है मगर लोग कहाँ हैं अपने

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के

रज़ी रज़ीउद्दीन

रोज़ इक शख़्स चला जाता है ख़्वाहिश करता

राज़ी अख्तर शौक़

मैं कहाँ और अर्ज़-ए-हाल कहाँ

राज़ी अख्तर शौक़

हलाक-ए-कश्मकश-ए-राएगाँ बहुत से हैं

राज़ी अख्तर शौक़

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

रज़ा जौनपुरी

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

वो कहाँ दर्द जो दिल में तिरे महदूद रहा

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

अफ़्लाक गूँगे हैं

रविश नदीम

अँधेरों में उजाले खो रहे हैं

रासिख़ इरफ़ानी

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

हुदूद का दाएरा

राशिद आज़र

समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे

राशिद आज़र

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

मिरे घर के लोग जो घर मुझी को सुपुर्द कर के चले गए

रशीद रामपुरी

दिल की क्या क़द्र हो मेहमाँ कभी आए न गए

रशीद रामपुरी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

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