सब के होंटों पे मुनव्वर हैं हमारे क़िस्से
और हम अपनी कहानी भी नहीं जानते हैं
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
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Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है
हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे
हर एक दास्ताँ तुझ से शुरूअ होती है
मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है
कुछ डूबता उभरता सा रहता है सामने
तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन
तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में
फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा
सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी
हम मुतमइन हैं उस की रज़ा के बग़ैर भी