फिर भी हम लोग वहाँ जीते हैं जीने की तरह
मौसम-ए-क़हर जहाँ ठहरा हुआ रहता है
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(494) Peoples Rate This
वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़
नफ़स नफ़स इज़्तिराब में था
बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं
तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन
सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई
अपनी तहज़ीब की दीवार सँभाले हुए हैं
मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है
ख़ाक उड़ती है ख़रीदार कहाँ खो गए हैं
फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा
छीन ले क़ुव्वत बीनाई ख़ुदाया मुझ से
तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ
सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा