तुलना Poetry (page 2)

शरार-ए-जाँ से गुज़र गर्दिश-ए-लहू में आ

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

रतजगा

शाज़ तमकनत

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

शाज़ तमकनत

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है

शाज़ तमकनत

बैत-ए-अंकबूत

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है

शमीम रविश

हम कि अफ़्कार को तज्सीम किया करते हैं

शाकिर कुंडान

वो लोग आएँ जिन्हें हौसला ज़ियादा है

शकील जमाली

मिरी तेज़-गामियों से नहीं बर्क़ को भी निस्बत

शकील बदायुनी

सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से

शकील बदायुनी

मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा

शकील बदायुनी

ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर

शकील बदायुनी

मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो

शकेब जलाली

जुनून-ए-इश्क़ की आमादगी ने कुछ न दिया

शाइस्ता सहर

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आशिक़ों के सैर करने का जहाँ ही और है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को

शहरयार

खेल का नतीजा

शहरयार

कच्चे रस्तों से

शहरयार

तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को

शहरयार

शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है

शहरयार

सब हैं मसरूफ़ किसी को यहाँ फ़ुर्सत नहीं है

शाहिद कमाल

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

भर गए ज़ख़्म तो क्या दर्द तो अब भी कोई है

शाहिद कमाल

अपनी तन्हाई का सामान उठा लाए हैं

शाहिद कमाल

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था

शाहिद इश्क़ी

ख़ाक-ज़ादा हूँ मगर ता-ब फ़लक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

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