तुलना Poetry (page 5)

तुम्हारे गाँव से जो रास्ता निकलता है

हबीब तनवीर

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

हबीब मूसवी

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी

ग़ुलाम भीक नैरंग

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

ग़ालिब

गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ

फ़ाज़िल जमीली

था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी

फ़रहत नदीम हुमायूँ

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था

फ़ानी बदायुनी

किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

किन दरीचों के चराग़ों से हमें निस्बत थी

फ़हीम शनास काज़मी

उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी

इश्क़ का परचा

दिलावर फ़िगार

नींद में खुलते हुए ख़्वाब की उर्यानी पर

दिलावर अली आज़र

अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं

दिल अय्यूबी

दिल ने चाहा बहुत और मिला कुछ नहीं

देवमणि पांडेय

रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

नज़्म

बिमल कृष्ण अश्क

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

ऐसा लगता है मुख़ालिफ़ है ख़ुदाई मेरी

बशीर सैफ़ी

वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही

बाक़ी सिद्दीक़ी

नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला

बाक़ी सिद्दीक़ी

क्या पता हम को मिला है अपना

बाक़ी सिद्दीक़ी

मान लो साहिबो कहा मेरा

बाबर रहमान शाह

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