हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

न क़स्र-ए-शाह से निस्बत न ख़ानक़ाह मिरी

किसी से कोई तअल्लुक़ न रस्म-ओ-राह मिरी

कि अब है ख़ेमा-ए-तन्हाई ख़ानक़ाह मिरी

न जाने किस के तजस्सुस में ग़र्क़ रहती है

भटकती फिरती है चारों तरफ़ निगाह मिरी

किसी के रू-ब-रू मैं सर-निगूँ हुआ ही नहीं

मिरी अना ने सलामत रखी कुलाह मिरी

मैं अपने मुल्क-ए-सुख़न से फ़राज़ चाहता हूँ

मुझे हिसार में रखती है अब सिपाह मिरी

चराग़ किस लिए दहलीज़-ए-दिल पे रौशन हैं

ये किस की दीद को आँखें हैं फ़र्श-ए-राह मिरी

कुचलता रहता हूँ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा से शाम ओ सहर

कि सर उठाती नहीं ख़्वाहिश-ए-गुनाह मिरी

मैं अपने-आप में सरसब्ज़ फिर भी रहता हूँ

अगरचे किश्त-ए-तमन्ना है बे-गियाह मिरी

न जाने कितने दिलों में शिगाफ़ कर डाले

अगर निकल गई 'अख़्तर' जो दिल से आह मिरी

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In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.