फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(636) Peoples Rate This
रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में
फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
क़ातिल
धूप में हम हैं कभी हम छाँव में
किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ
ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का
नए शहरों की बुनियाद
काली रेत
इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है
रेत का शहर