इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
कैसी कैसी अजनबी दुनियाओं में
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
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रेत का शहर
घर में सहरा है तो सहरा को ख़फ़ा कर देखो
सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से
गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है
सच्चाई
जंगल से आगे निकल गया
कह रहे थे लोग सहरा जल गया
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
इस्फ़न्ज की अंधी सीढ़ियों पर
फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है
साँप वाली
रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में