देर Poetry (page 2)

फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले

ज़िया फ़तेहाबादी

मिरी आँखों में जो थोड़ी सी नमी रह गई है

ज़िया फ़ारूक़ी

मैं तो अपने आप को उस दिन बहुत अच्छी लगी

ज़ेहरा निगाह

तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा

ज़ेहरा निगाह

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

''अलिफ़'' और ''बे'' के नाम

ज़ेहरा निगाह

आज की बात

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा

ज़ेहरा निगाह

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

आया था मेरे पास वो कुछ देर के लिए

ज़ीशान साहिल

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

फूल

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत में देर हो सकती है

ज़ीशान साहिल

किताबी कीड़े

ज़ीशान साहिल

ख़ुद-कुशी

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

दूसरा आसमान

ज़ीशान साहिल

दुल्हन

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा

ज़ीशान साहिल

मैं उस की अंजुमन में अकेला नहीं गया

ज़ीशान साहिल

पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं

ज़ेबा

तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ

ज़ेब ग़ौरी

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

ज़ेब ग़ौरी

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