देर Poetry (page 19)

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

इदरीस बाबर

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए

हुसैन माजिद

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

हुसैन ताज रिज़वी

एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना

हुरमतुल इकराम

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

महदूद-निगाही के सनम टूट रहे हैं

हयात वारसी

तिरी तलाश से बाक़ी कोई मकाँ न रहा

हातिम अली मेहर

न ले जा दैर से का'बा हमें ज़ाहिद कि हम वाँ भी

हातिम अली मेहर

कूचे में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

ऐसे कुछ लोग भी मिट्टी पे उतारे जाएँ

हस्सान अहमद आवान

सज्दा-गाह-ए-बरहमन और शैख़ हैं दैर-ओ-हरम

हसरत अज़ीमाबादी

हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर

हसरत अज़ीमाबादी

जान कर कहता है हम से अपने जाने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी

इन दोनों घर का ख़ाना-ख़ुदा कौन ग़ैर है

हसरत अज़ीमाबादी

वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी

ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है

हसन नईम

इक परिंदे की तरह उड़ गया कुछ देर हुई

हसन अब्बासी

रात ये कौन मिरे ख़्वाब में आया हुआ था

हसन अब्बासी

किसी के हिज्र में यूँ टूट कर रोया नहीं करते

हसन अब्बास रज़ा

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