इक परिंदे की तरह उड़ गया कुछ देर हुई
अक्स उस शख़्स का तालाब में आया हुआ था
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घर से मेरा रिश्ता भी कितना रहा
हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर
कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे
निस्बतें थीं रेत से कुछ इस क़दर
सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों
रात-दिन पुर-शोर साहिल जैसा मंज़र मुझ में था
मुझ को मालूम था इक रोज़ चला जाएगा!
ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के
आज तेरी याद से टकरा के टुकड़े हो गया
ख़मोश रह कर पुकारती है