मुझ को मालूम था इक रोज़ चला जाएगा!
वो मिरी उम्र को यादों के हवाले कर के
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1177) Peoples Rate This
ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के
कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे
सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों
रात ये कौन मिरे ख़्वाब में आया हुआ था
ख़मोश रह कर पुकारती है
रात-दिन पुर-शोर साहिल जैसा मंज़र मुझ में था
निस्बतें थीं रेत से कुछ इस क़दर
वो ब'अद-ए-मुद्दत मिला तो रोने की आरज़ू में
मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर