हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
एक रहती है यही उस दर पे जाने की ख़बर
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हुस्न को उस के ख़त का दाग़ लगा
जान कर कहता है हम से अपने जाने की ख़बर
है याद तुझ से मेरा वो शर्ह-ए-हाल देना
मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब
निभे थी आन उन्हों की हमेशा इश्क़ में ख़ूब
गुल कभू हम को दिखाती है कभी सर्व-ओ-समन
ज़ुल्फ़-ए-कलमूँही को प्यारे इतना भी सर मत चढ़ा
रहे है नक़्श मेरे चश्म-ओ-दिल पर यूँ तिरी सूरत
करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे
सौगंद है हसरत मुझे एजाज़-ए-सुख़न की
दामन है मेरा दश्त का दामान दूसरा
वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश